भारतीय किसान # भारतीय किसान
सबसे बुरी दशा में भारतीय किसान है । दुनिया में किसानों मे सबसे अधिक आत्महत्यायें भारत में होती हैं । आइये मूलभूत परिवर्तन के लिये संघर्ष करें । कृषि को लाभकारी बनायें । लागत घटायें , सब्सिडी बढ़ायें , मार्केटिंग करें ,फसलों का बीमा करायें email-- horisardarpatel@gmail.com ,pateltimes47@gmail.com
Saturday, 27 August 2016
Thursday, 9 June 2016
PATEL TIMES(पटेल टाइम्स): Fwd: article for magzine
किसान आत्महत्या
किसान आत्म हत्याओं मे संख्या लघु और सीमान्त किसानों की ही अधिक होती है । आज भी यही वर्ग सेठ ,महाजनों से ऋण लेता है और न चुका पाने के कारण आत्म हत्या करने को मजबूर होता है । सरकारी बैंकों से मात्र ६ या ७ प्रतिशत इन छोटे किसानों को ऋण देकर इतिश्री कर ली जाती है ।
आइये इनके समर्थन में देश व्यापी आन्दोलन करें ।
Friday, 22 April 2016
Thursday, 31 March 2016
कृषि को उद्योग का दर्जा
की माँग
4 /कृषि को उद्योग का दर्जा
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कृषि के समस्त कार्य एक उद्योग की तरह हैं । लगातार पूंजी निवेश , स्रम , उत्पादन आदि समस्त क्रियायें उद्योगों की भाँति होती हैं । समर्थन मूल्य भी मज़बूरी मे ही सही सरकारों द्वारा जारी किये जाते हैं । कृषक और कृषि असंगठित क्षेत्र हैं इस लिये उद्योंगों की तरह अपने मूल्य का निर्धारण नहीं कर पाता है । लागतें बढ़ती जाती हैं जिससे शुद्ध आय कम हो जाती है । कीमतों का निर्धारण आय और व्यय के आधार पर किया जाता है परन्तु कृषि में ऐसा नहीं हो रहा है । यहाँ किसान फ़सलें बो तो सकता है पर उनकी कीमत उद्योंगो की तरह स्वयं निर्धारित नहीं कर सकता ।
कृषि के अंतर्गत लागत अधिक और आय कम होने के कारण किसानों का जीवनयापन तक कठिन है । देश भर में किसानों के द्वारा आत्महत्या की घटनायें भी प्रकाश में आती रहती हैं । कृषि को लाभकारी बनाना किसानों के लिये तो ज़रूरी है ही समस्त देश के विकास और अनाज उपलब्धता के लिये भी आवश्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य भी है ।
एक उद्योग की तरह बैंकों से लोन भी स्वीकृत नहीं हो सकता ।कृषि को स्वयं बैंक घाटे का क्षेत्र मानता है। परन्तु दोनों स्थितियों से किसान को मुक्ति मिल सकती है यदि कृषि को उद्योग का दर्जा दे दिया जाय ।
राज कुमार सचान होरी
राष्ट्रीय अध्यक्ष
बदलता भारत(INDIA CHANGES )
www.horiindiachanges.blogspot.com, www.horiindianfarmers.blogspot.com
www.indianfarmingtragedy.blogspot.com
बदलता भारत की माँग
बदलता भारत
की माँग
4 /कृषि को उद्योग का दर्जा
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कृषि के समस्त कार्य एक उद्योग की तरह हैं । लगातार पूंजी निवेश , स्रम , उत्पादन आदि समस्त क्रियायें उद्योगों की भाँति होती हैं । समर्थन मूल्य भी मज़बूरी मे ही सही सरकारों द्वारा जारी किये जाते हैं । कृषक और कृषि असंगठित क्षेत्र हैं इस लिये उद्योंगों की तरह अपने मूल्य का निर्धारण नहीं कर पाता है । लागतें बढ़ती जाती हैं जिससे शुद्ध आय कम हो जाती है । कीमतों का निर्धारण आय और व्यय के आधार पर किया जाता है परन्तु कृषि में ऐसा नहीं हो रहा है । यहाँ किसान फ़सलें बो तो सकता है पर उनकी कीमत उद्योंगो की तरह स्वयं निर्धारित नहीं कर सकता ।
कृषि के अंतर्गत लागत अधिक और आय कम होने के कारण किसानों का जीवनयापन तक कठिन है । देश भर में किसानों के द्वारा आत्महत्या की घटनायें भी प्रकाश में आती रहती हैं । कृषि को लाभकारी बनाना किसानों के लिये तो ज़रूरी है ही समस्त देश के विकास और अनाज उपलब्धता के लिये भी आवश्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य भी है ।
एक उद्योग की तरह बैंकों से लोन भी स्वीकृत नहीं हो सकता ।कृषि को स्वयं बैंक घाटे का क्षेत्र मानता है। परन्तु दोनों स्थितियों से किसान को मुक्ति मिल सकती है यदि कृषि को उद्योग का दर्जा दे दिया जाय ।
राज कुमार सचान होरी
राष्ट्रीय अध्यक्ष
बदलता भारत(INDIA CHANGES )
www.horiindiachanges.blogspot.com, www.horiindianfarmers.blogspot.com
www.indianfarmingtragedy.blogspot.com
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Wednesday, 30 March 2016
जय किसान
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'अन्नदाता' कह ,किसान का ,हम सम्मान बढ़ाते हैं ।
जय किसान का नारा भी तो ,शास्त्री जी गढ़ जाते हैं ।।
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चलो एक किसान होरी संग ,एक कचेहरी साथ चलें ।
वही पुरानी धोती कुर्ता ,चप्पल अब भी साथ मिलें ।।
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उसके खेतों मे दबंग ने ,क़ब्ज़ा किया हुआ था ।
एसडीएम ,डीएम से कहने ,होरी वहाँ गया था।।
डोल रहा था इधर उधर , बाबू अर्दलियों तक ।
कोर्ट कचेहरी सड़कों तक,बंगलों से गलियों तक ।।
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छोटे से बडके नेता तक ,चप्पल घिस डाली थी ।
दान दक्षिणा देते देते ,जेब हुई ख़ाली थी ।।
दौड़ लगाता वह किसान ,अंदर से पूर्ण हिला था ।
पर उसकी ख़ुद की ज़मीन का,क़ब्ज़ा नहीं मिला था ।।
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होरी का परिवार दुखी ,पीड़ित जर्जर ,तो था ही था ।
रोटी सँग बोटी नुचने का ,ग़म ही ग़म तो था ही था ।।
गया जहाँ था मिला वहीं,अपमान किसान सरीखा ।
उसको तो हर सख्स, ग़ैर सा ,मुँह फैलाये दीखा ।।
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जय किसान कहने वाले सब ,उसकी हँसी उड़ाते ।
नहीं मान सम्मान ,अँगूठा मिल सब उसे दिखाते ।।
क़र्ज़ भुखमरी से पहले ही ,वह अधमरा हुआ था ।
लेकिन ज़्यादा अपमानों से ,अंतस् पूर्ण मरा था ।।
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एक दिवस वह गया खेत में , लौटा नहीं कभी भी ।
होरी की यह कथा गाँव में ,कहते सभी अभी भी ।।
होरी किसान की अंत कथा ,दूजा होरी बतलाये ।
फिर से आँधी तूफ़ानों सँग , काले बादल छाये ।।
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राज कुमार सचान होरी
१७६ अभयखण्ड -१ इंदिरापुरम , गाजियाबाद
9958788699